भले रूठ जाये ये सारा जमाना,नहीं रागियों की शरण मुझको जाना॥बस एक वीतरागी को मस्तक झुकानाये श्रद्धान मेरा है मेरु समाना, नहीं रागियों की शरण में है जाना ॥ टेक॥मेरे ज्ञान और ध्यान में बस तुम्हीं हो,अटल और श्रद्धान में बस तुम्हीं हो ।नहीं लाज गौरव, ना भय मुझको आना ।नहीं रागियों की शरण में है जाना ।बस एक वीतरागी को मस्तक झुकाना ॥१॥तुम्हीं से मुझे मुक्तिमार्ग मिला है,रत्नत्रय का सुन्दर चमन ये खिला है।ना तीर्थंकरों के, कुल को लजाना ।नहीं रागियों की शरण में है जाना ।बस एक वीतरागी को मस्तक झुकाना ॥२॥मैं हूँ मात्र ज्ञायक ये अनुभव से जाना,तिहुँ लोक में बस उपादेय माना ।ये गुरुओं का ऋण है, मुझे जो चुकाना ।नहीं रागियों की शरण में है जाना ।बस एक वीतरागी को मस्तक झुकाना ॥३॥है आदर्श अकलंक गुरुवर हमारे,है निकलंक हम सबको प्राणों से प्यारे।धर्म के लिये, जिनने मस्तक कटाया ।नहीं जैन कुल को उन्होने लजायाउसी मार्ग पर हमको चलके दिखाना ।नहीं रागियों की शरण में है जाना ।बस एक वीतरागी को मस्तक झुकाना ॥४॥