भूल के अपना घर, जाने कितनों के घर, तुझको जाना पडा ॥इस जहां में कई घर बनाये तूने, रिश्तेदारी सभी से निभाई तूनेजिनके थे तुम पिता, फ़िर उन्हीं को पिता, तुझे बनाना पडा ॥भूल के अपना घर, जाने कितनों के घर, तुझको जाना पडा ॥1॥जो थी माता तेरी वो ही पत्नी बनी, पत्नी से फ़िर वो ही तेरी भगिनी बनीरिश्ते करते रहे, हम बिछुडते रहे, ना ठिकाना मिला ॥भूल के अपना घर, जाने कितनों के घर, तुझको जाना पडा ॥2॥बनके थलचर तू सबलों से खाया गया, बन के नभचर तू जालों फ़ंसाया गयानर्क पशुओं के गम, देख कर ये सितम तुझको रोना पडा ॥भूल के अपना घर, जाने कितनों के घर, तुझको जाना पडा ॥3॥इस जहां की तो वधुऐं अनेकों वरीं, मुक्ती रानी न अब तक तेरे मन बसीजिसने उसको वरा, इस जहां की धरा, पर ना आना पडा ॥भूल के अपना घर, जाने कितनों के घर, तुझको जाना पडा ॥4॥