माया में फ़ंसे इंसान, विषयों में ना बह जानाचिन्मय चैतन्य निधि को भूल ना पछताना ॥तन धन वैभव परिजन, तेरे काम ना आयेंगे,संयोग सभी नश्वर, तेरे साथ ना जायेंगे,तू अजर अमर ध्रुव है, यह भाव सदा लाना ॥माया में फ़ंसे इंसान, विषयों में ना बह जाना ॥१॥पर द्रव्यों में रमकर, अपने को भूल रहा,माया अरु ममता में तू प्रतिक्षण फ़ूल रहा,अनमोल तेरा जीवन, गफ़लत में ना खो जाना ॥माया में फ़ंसे इंसान, विषयों में ना बह जाना ॥2॥चैतन्य सदन भासी, तू ज्ञान दिवाकर है,है सहज शुद्ध भगवन, तू सुख का सागर है,अपने को जरा पहिचान, विषयों में ना खो जाना ॥माया में फ़ंसे इंसान, विषयों में ना बह जाना ॥3॥लख चौरासी भ्रमते, दुर्लभ नरतन पाया,जिनश्रुत जिनदेव शरण, पुण्योदय से पाया,आतम अनुभूति बिना रह जाये ना पछताना ॥माया में फ़ंसे इंसान, विषयों में ना बह जाना ॥4॥