मेरा आज तलक प्रभु करुणापति,थारे चरणों में जियरा गया ही नहीं ।मैं तो मोह की नींद में सोता रहा,मुझे तत्त्वों का दरस भया ही नहीं ॥टेक॥मैंने आतम बुद्धि बिसार दई,और ज्ञान की ज्योति बिगाड़ लई ।मुझे कर्मों ने ज्यों त्यों फंसा ही लिया,थारे चरणों में आन दिया ही नहीं ॥1॥प्रभु नरकों में दुःख मैंने सहे,नहीं जायें प्रभु अब मुझसे कहे ।मुझे छेदन भेदन सहना पड़ा,और खाने को अन्न मिला ही नहीं ॥2॥मैं तो पशुओं में जाकर के पैदा हुआ,मेरा और भी दुःख वहाँ ज्यादा हुआ ।किसी माँस के भक्षी ने आन हता,मुझ दीन को जीने दिया ही नहीं ॥3॥मैं तो स्वर्गों में जाकर देव हुआ,मेरे दुःख का वहाँ भी न छेद हुआ,मैं तो आयु को यूँ ही बिताता रहा,मैंने संयम भार लिया ही नहीं ॥4॥प्रभु उत्तम नरभव मैंने लहा,और निशदिन विषयों में लिप्त रहा ।माता पिता प्रियजन ने भी मुझे,कभी चैन तो लेने दिया ही नहीं ॥5॥मैंने नाहक जीवों का घात किया,और पर धन छलकर खोश लिया ।मेरी औरों की नारी पे चाह रही,मैंने सत तो भाषण दिया ही नहीं ॥6॥मैं तो मोह की नींद में सोता रहा,मैंने आतम दरस किया नहीं ।मैं तो क्रोध की ज्वाला में भस्म रहा,मैंने शान्ति सुधा रस पिया ही नहीं ॥7॥जिनवर प्रभु अब सुनिये तो जरा,मेरा पापों से डरता है जियरा ।खड़ा थारे चरणों में ये दास 'चमन',मैंने और ठिकाना लिया ही नहीं ॥8॥