मैं ज्ञानानंद स्वभावी हूं, मैं ज्ञानानंद स्वभावी हूं ॥मैं हूं अपने में स्वयं पूर्ण, पर की मुझमें कुछ गंध नहीं ।मैं अरस, अरूपी, अस्पर्शी, पर से कुछ भी सम्बन्ध नहीं ॥मैं रंग-राग से भिन्न भेद से, भी मैं भिन्न निराला हूं ।मैं हूं अखंड चैतन्य-पिण्ड, निज-रस में रमने वाला हूं ॥मैं ही मेरा कर्ता-धर्ता, मुझमें पर का कुछ का काम नहीं ।मैं मुझमें रमने वाला हूं, पर में मेरा विश्राम नहीं ॥मैं शुद्ध-बुद्ध अविरुद्ध एक, पर परिणति से अप्रभावी हूं ।आत्मानुभूति से प्राप्त तत्त्व, मैं ज्ञानानंद स्वभावी हूँ ॥