मोह की महिमा देखो क्या तेरे मन में समाई,अपनी ही महिमा भुलाई तूने अपनी ही महिमा ना आईकाहे अरिहन्तो के कुल को लजाया, काहे जिनवाणी माँ का कहना भुलाया ।काहे मुनिराजों की सीख ना मानी, सिद्ध समान शक्ति, हरकत बचकानी,अपने ही हाथों अपने घर में ही आग लगाई ॥अपनी ही महिमा...समवसरण में जिनवर, इन्द्रों ने गाया, सौ सौ इन्द्रों के मध्य सबको समझाया ।अपनी शुद्धात्मा को भगवन बताया,भव्यों ने समझा अंदर अनुभव में आया,जानो और देखो चेतन इसमें ही तेरी भलाई ॥अपनी ही महिमा....काहे अपनाये तूने माटी के ढेले, कहता तु सोना चांदी, सिक्के व धेले । पुद्गल अचेतन से प्रीती बढाई, प्रभुता को भूला पामर कृति बनाई,रघुकुल के राम तूने काहे को रीति गमाई ॥अपनी ही महिमा...आतम आराधना का आतम ही मंच है,जिसमें परभावों का ना रंच प्रपंच है ।कोई ना स्वामी जिसमें कोई ना चाकर, बंसी बजैया तूही तेरा नटनागर,जिसने भी मुक्ति पाई अस्ति की मस्ती में पाई ॥अपनी ही महिमा....