यह स्वारथ का संसार दुःख भण्डार
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यह स्वारथ का संसार, दुःख भण्डार, संभल रे प्राणी।
तेरी बीत रही ज़िंदगानी।।
जीवन ये पवन का झोंका है, तू हाड मांस का खोखा है।
क्षणभंगुर है ये मद से भरी जवानी।।१।।
स्वारथ का रिश्ता नाता है, क्यूँ उसमें फँसता जाता है।
कर ले अपना कल्याण चाहे जिनवाणी।।२।।
जब वृद्ध अवस्था आती है, कंचन काया मुरझाती है।
हर अंग शिथिल हो जाए तेरा प्राणी।।३।।
जब काल अचानक आता है, सब हाड पड़ा रह जाता है।
दुर्लभ नरभव को सफल बना अभिमानी।।४।।
तेरे साथ न कोई जायेगा, सब यहीं पड़ा रह जाएगा।
जीवन में धर्म कमा ले मूरख प्राणी।।५।।
नश्वर तेरी यह काया है, क्षणभंगुर जग की माया है।
सच्चे मन से अपनाले प्रभु की वाणी।।६।।
मुश्किल से यह नरतन पाया, छोड़ो जग की झूठी माया।
हर सांस प्रभु का भज ले रे भोले प्राणी।।७।।