या संसार में कोई सुखी नजर नहीं आता ॥टेक॥कोई दुखिया निर्धनी, दीन-वचन मुख बोले ।भ्रमत फिरे परदेशन में, सुख की चाह में डोले ॥या संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया ॥१॥दौलत के कोठार भरे हैं, तन में रोग समायेनिशदिन कड़वी खात दवाई, कहो करत नहिं काया ॥या संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया ॥२॥तन निरोग अरु धन बहुतेरा, फिर भी सुख को रोतापूजत फिरे कुदेव जगत के, फिर भी पुत्र नहीं होता ॥या संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया ॥३॥तन निरोग धन पुत्र पाय के, फिर भी रहा दुखारी,पुत्र नहीं आज्ञा को माने, घर में कर्कशा नारी ॥या संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया ॥४॥तन धन और सुलक्षण नारी, सुत है आज्ञाकारी ।फिर भी रहा दुखिया जगत में, भयो न छत्री धारी ॥या संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया ॥५॥चक्रवर्ती भए छत्रपति भए, फिर भी नारी संग मोहे ।आशा तृष्णा खुटी न जिनकी, फिर भी सुख को रोवे ॥या संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया ॥६॥'जगनलाल' वही है सुखिया, जो इच्छा का त्यागी,राग द्वेष तजि सकाल परिग्रह, भये परम वैरागी ॥या संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया ॥७॥