शुद्धात्मा का श्रद्धान होगा, निज आत्मा तब भगवान होगानिज में निज, पर में पर भासक, सम्यकज्ञान होगा ॥नव तत्वों में छुपी हुई जो, ज्योति उसे प्रगटाऐंगेपर्यायों से पार त्रिकाली, ध्रुव को लक्ष्य बनाऐंगेशुद्ध चिदानंद रसपान होगा, निज आत्मा तब भगवान होगा निज में निज, पर में पर भासक, सम्यकज्ञान होगा ॥१॥निज चैतन्य महा हिमगिरि से, परिणति घन टकराऐंगेशुद्ध अतीन्द्रिय आनंद रसमय, अमृत जल बरसायेंगेमोह महामल प्रक्षाल होगा, निज आत्मा तब भगवान होगानिज में निज, पर में पर भासक, सम्यकज्ञान होगा ॥२॥ आत्मा के उपवन में, रत्नत्रय पुष्प खिलायेंगेस्वानुभूति की सौरभ से, निज नंदन वन महकायेंगेसंयम से सुरभित उद्यान होगा, निज आत्मा तब भगवान होगा निज में निज, पर में पर भासक, सम्यकज्ञान होगा शुद्धात्मा का श्रद्धान होगा, निज आत्मा तब भगवान होगा ॥३॥