हमने तो घूमीं चार गतियाँ
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हमने तो घूमीं चार गतियां
न मानी जिनवाणी की बतियां ॥टेक॥
नरको में दुख ही दुख पाये, खण्ड खण्ड यह देह कराये ।
पायो न चैन दिन-रतियां, न मानी जिनवाणी की बतियां ॥१॥
पशु बन करके बोझ उठायो, भूख प्यास सही अकुलायो ।
अंसुवन से भीग गई अंखियां, न मानी जिनवाणी की बतियां ॥२॥
जब दुर्लभ मानुष तन पायो माया ममता में विसरायो ।
लीनी न अपनी सुरतियां, न मानी जिनवाणी की बतियां ॥3॥
पुण्यउदय से सुरगतिपायी, मरण समय माला मुरझाई ।
मरके फिर भये पेड़-पतियां, न मानी जिनवाणी की बतियां ॥४॥
बिन सम्यक् घूमा तन धारी, अपने को पहचान पुजारी ।
सतगुरु की मानो सुमतियां, न मानी जिनवाणी की बतियां ॥५॥