हे भविजन ध्याओ आतमराम ...कौन जानता कब हो जाए इस जीवन की शाम ॥टेक॥जग में अपना कुछ भी नहीं है, परिजन तन या दामआयु अंत पर सब छूटेगा, जल जाएगी चाम ॥हे भवि जन ध्याओ आतमराम ॥१॥यह संसार दुखों की अटवी, यहाँ नहीं आराम ।शुद्धातम की करो साधना जग से रहो निष्काम ॥हे भवि जन ध्याओ आतमराम ॥२॥मोह राग को छोड़ के चेतन, निज में करो विश्राम ।शुद्ध-बुद्ध अविनाशी हो तुम, शुद्धातम सुखधाम ॥हे भवि जन ध्याओ आतमराम ॥३॥सिद्ध स्वरूपी अमल स्वभावी, आनन्दमयी ध्रुवधाम ।ब्रह्मानन्द में लीन रहो तुम, जग से मिले विराम ॥हे भवि जन ध्याओ आतमराम ...कौन जानता कब हो जाए इस जीवन की शाम ॥४॥