घड़ि-घड़ि पल-पल छिन-छिन निशदिन, प्रभुजी का सुमिरन करले रे ॥प्रभु सुमिरेतैं पाप कटत हैं, जनम मरन दुख हरले रे ॥१॥मनवचकाय लगाय चरन चित, ज्ञान हिये विच धर ले रे ॥२॥'दौलतराम' धर्म नौका चढ़ि, भवसागर तैं तिर ले रे ॥३॥
अर्थ : हे मनुष्य ! प्रत्येक घड़ी. प्रत्येक पल और प्रतिक्षण अर्थात् निरंतर और नित्यप्रति तू प्रभु का स्मरण कर; उनके गुणों का चिंतन कर।
प्रभु के स्मरण से, उनके गुणों के स्मरण से पापों का नाश होता है, जन्म मरण के दुख दूर होते हैं।
मन और वचन और कायसहित प्रभु के चरणों में चित्त लगाकर, ज्ञानस्वरूप को हृदय में धारण करो।
दौलतराम कहते हैं कि धर्मरूपी नौका पर चढ़कर तू इस भव-सागर, संसार समुद्र के पार हो जा।