अरे जिया जग धोखे की टाटी ॥झूठा उद्यम लोक करत है, जामें निशदिन घाटीजानबूझ कर अंध बने हैं, आंखन बांधी पाटी ॥१॥निकस जायें प्राण छिनक में, पडी रहेगी माटी'दौलतराम' समझ मन अपने, दिल की खोल कपाटी ॥२॥
अर्थ : हे जीव! यह संसार भ्रम का पर्दा है।
यहां लोग ऐसा खोटा व्यापार (मिथ्या पुरुषार्थ) करते है जिसमे हमेशा हानि ही हानि होती है । हे जीव! तू यहां जान बूझकर अंधा बना हुआ है, तूने अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी है ॥1॥
तू देख लेना कि अंत मे एक दिन तेरे प्राण क्षणभर में निकल जाएंगे और यह मिट्टी यहीं पड़ी रह जायगी । कविवर दौलतराम जी स्वयं से कहते है कि हे मेरे मन ! तू अपने हदय के कपाट खोल और सत्य स्वरूप समझ ॥2॥