चलि सखि देखन नाभिराय-घर, नाचत हरि नटवा ।अद्भुत ताल मान शुभ लय युत, चक्त राग षटवा ॥मणिमय नूपुरादि भूषन दुति, युत सुरंग पटवा ।हरि कर नखन नखन पै सुरतिय, पण फेरत कटवा ॥किन्नर कर धर बीन बजावत, लय लावत झटवा ।'दौलत' ताहि लखे दृग तृपते, सूझत शिव-बटवा ॥
अर्थ : हे सखी ! चलो, राजा नाभिराय के घर चलें; आज वहाँ इन्द्र नट बनकर नाच रहा है, उसे देखेंगे।
हे सखी ! वहॉ वह इन्द्र नर आज अद्भुत ताल और शुभ लय से युक्त होकर घट्प्रकार के राग का गायन कर रहा है। उसने नूपुरादि मणिमय आभूषण पहन रखे हैं और सुन्दर रंग के वस्त्र धारण कर रखे हैं। उसके हाथ के प्रत्येक नख पर अनेक देवियाँ अपनी कमर घुमाकर नृत्य कर रही हैं। किन्नर भी इस समय वीणा को अपने हाथ में लेकर बजा रहे हैं और शीघ्रता क॑ साथ लय उत्पन्न कर रहे है।
कविवर दौलतराम कहते हैं कि इस दृश्य को देखने से आँखें तृप्त हो जाती हैं और मोक्ष का मार्ग दिखाई दे जाता है।