nikkyjain@gmail.com

🙏
श्री
Click Here

भज ऋषिपति
Karaoke :

भज ऋषिपति ऋषभेश जाहि नित, नमत अमर असुरा ।
मनमथ-मथ दरसावन शिव-पथ, वृष-रथ-चक्र-धुरा ॥1॥

जा प्रभु गर्भ छ-मास पूर्व सुर, करी सुवर्ण धरा ।
जन्मत सुरगिरि धर सुरगण युत, हरि पय-न्हवन करा ॥2॥

नटत नृत्यकी विलय देख प्रभु, लहि विराग सु थिरा ।
तबहि देवऋषि आय नाय शिर, जिन पद पुष्प धरा ॥3॥

केवल समय जास वच-रवि ने, जगभ्रम-तिमिर हरा ।
सुदृग-बोध-चारित्र-पोत लहि, भवि भव-सिन्धु तरा ॥4॥

योग संहार निवार शेष विधि, निवसे वसुम धरा ।
'दौलत' जे याको जस गावें, ते ह्वैं अज अमरा ॥5॥



अर्थ : हे भाई ! ऋषियों के स्वामी उन ऋषभ जिनेन्द्र का भजन करो जिनको सुर और असुर भी सदा नमस्कार करते हैं। वे काम-विकार को नष्ट करनवाले हैं, मोक्षमार्ग को दिखानेवाले हैं और धर्मरूपी रथ के चक्र की धुरी हैं ।
श्री ऋषभदेव के गर्भ मे आने से छह माह पूर्व ही ठेवो ने इस पृथ्वी को स्वर्णणय बना दिया था और उनके जन्म लेने पर इन्द्र ने अपने देवों को साथ लेकर सुमेरु पर्वत पर क्षीरसागर के जल से उनका अभिषेक किया था ।
श्री ऋषभदेव ने नृत्य करती हुई नीलाजना नामक नर्तकी को विलय होते देखकर वैराग्य प्राप्त कर लिया था और फिर उसी समय लौकान्तिक देवों ने भी आकर एवं उनके चरणों मे मस्तक झुकाकर उनको पुप्पाजलि अर्पित की थी।
उसके बाद केवलज्ञान उत्पन्न होने पर ऋषभदेव के वचनरूपी सूर्य ने संसार के भ्रमरूपी अन्धकार को दूर कर दिया था, जिससे भव्यजीवों ने सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रि की नीका प्राप्त करके संसार-सागर को पार कर लिया।
अन्त में श्री ऋषभ जिनेन्द्र ने योग-निरोध करके शेष कर्मों का भी नाश कर दिया और वे अष्टम भूमि सिद्धशिला पर जाकर विराजमान हो गये ।
कविवर दौलतराम कहते हैं कि जो जीव श्री ऋषभ जिनेन्द्र का यशकीर्तन करते हैं, वे अजर-अमर पद की प्राप्ति कर लेते हैं ।
Close

Play Jain Bhajan / Pooja / Path

Radio Next Audio

देव click to expand contents

शास्त्र click to expand contents

गुरु click to expand contents

कल्याणक click to expand contents

अध्यात्म click to expand contents

पं दौलतराम कृत click to expand contents

पं भागचंद कृत click to expand contents

पं द्यानतराय कृत click to expand contents

पं सौभाग्यमल कृत click to expand contents

पं भूधरदास कृत click to expand contents

पं बुधजन कृत click to expand contents

पर्व click to expand contents

चौबीस तीर्थंकर click to expand contents

दस धर्म click to expand contents

selected click to expand contents

नित्य पूजा click to expand contents

तीर्थंकर click to expand contents

पाठ click to expand contents

स्तोत्र click to expand contents

द्रव्यानुयोग click to expand contents

द्रव्यानुयोग click to expand contents

द्रव्यानुयोग click to expand contents

loading