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जिन बैन सुनत मोरी
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जिन बैन सुनत मोरी भूल भगी ॥टेक॥

कर्म-स्वभाव भाव चेतन को, भिन्न पिछानत सुमति जगी ॥१॥

निज अनुभूति सहज ज्ञायकता, सो चिर रुष-तुष-मैल पगी ॥२॥

स्यादवाद धुनी निर्मल जलतैं, विमल भई समभाव लगी ॥३॥

संशय-मोह-भरमता विघटी, प्रगटी आतम सोंज सगी ॥४॥

'दौल' अपूरव मंगल पायौ, शिवसुख लेन होंस उमगी ॥५॥



अर्थ : जिनेन्द्र के दिव्य वचन सुनकर मेरा अज्ञान दूर हो गया - भ्रान्ति दूर हो गई। कर्म का स्वभाव और चेतना का स्वभाव भिन्न-भिन्न है, यह सुमति जिनेन्द्र के दिव्य वचनों को सुनने से आई है।
Hearing the divine voice of Jinendra, my ignorance disappeared - the confusion disappeared. The nature of karma and the nature of consciousness are different, this comes from listening to the divine words of Jinendra.

अज्ञेय को सहज रूप में जानने का अनुभव, जिसका स्वभाव है, वह अनादि से, दीर्घकाल से क्रोध और मैलरूपी छिलके से ढका है । वह अब स्याद्वादमयों ध्वनि रूपी निर्मल जल से विमल होकर समताभावी होने लगा है।
The experience of knowing the unknowable in a natural way, whose nature is, is covered with eternal, long-lived anger and paleness peels. He is now becoming samtamayi, being blown away by syadwad words like clear water.

संशय, मोह, भ्रम के मिटने पर आत्मपरिणति/आत्मा की सामर्थ्य-शक्ति प्रकट हुई है। दौलतराम को अपूर्व, जो पहले कभी न हुआ, ऐसा मंगल हुआ है, अभीष्ट की सिद्धि हुई है कि जिससे मोक्ष-प्राप्ति हेतु प्रबल इच्छा/उत्सुकता बढ़ी है, प्रगट हुई है।
At the erasure of doubt, fascination, illusion, the power of self-determination / soul is revealed. Daulataram has been in awe of Apurva, which has never happened before, it has been desired that by which there has been a strong desire / eagerness for salvation.