जिनवानी जान सुजान रे ॥टेक॥लाग रही चिरतैं विभावता, ताको कर अवसान रे ॥जिनवानी॥द्रव्य क्षेत्र अरु काल भाव की, कथनी को पहिचान रे ।जाहि पिछाने स्वपरभेद सब, जाने परत निदान रे ॥जिनवानी जान सुजान रे ॥१॥पूरब जिन जानी तिनहीने, भानी संसृतिवान रे ।अब जानै अरु जानेंगे जे, ते पावैं शिवथान रे ॥जिनवानी जान सुजान रे ॥२॥कह 'तुषमाष' सुनी शिवभूती, पायो केवलज्ञान रे ।यौ लखि 'दौलत' सतत करो भवि, जिनवचनामृत पान रे ॥जिनवानी जान सुजान रे ॥३॥
अर्थ : हे सज्जन चित्त! जिनेन्द्र की वाणी को जानो, समझो। दीर्घकाल से विभावों के प्रति जो रुचि रही है उसका अब अन्त करदो।
O gentle mind! Know the speech of Jinendra, understand it. End the interest that you have had for long-term effects.
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार परिणाम को पहचानो, जिसको पहचानने पर स्व और पर का भेद गहराई से समझ में आता है।
Identify the result according to matter, area, time and emotion, which on identifying makes a deep sense of understanding of the difference between self and the other.
पूर्व में भी जिन्होंने इस स्व-पर भेद को जाना, उन्होंने ही संसार को पहचाना और संसार में भ्रमण का/आवागमन का नाश किया। जो इस भेद को अब जान रहे हैं और जो आगे जानेंगे, वे भी आवागमन का नाशकर मोक्ष को प्राप्त करेंगे।
Even in the past, those who knew this distinction on their own, they recognized the world and destroyed the travel / movement in the world. Those who are now knowing this distinction and those who will know further, will also destroy the movement and attain salvation.
तुष और माष-दाल और छिलके से भेदज्ञान कर शिवभूति मुनि मोक्षगामी हुए। यह देखकर दौलतराम कहते हैं कि हे भव्य! चैतन्य के अमृतरूप वचन का निरन्तर पान करो, श्रद्धान करो, चिन्तन करो, मनन करो।
Shivbhuti Muni attained salvation by discriminating against Tush and Masha-dal and peel. Seeing this, Pt. Daulatram ji says, “O grand! Continue to cherish the eternal word of Chaitanya, pay obeisance, contemplate, meditate.”