जिया तुम चालो अपने देस, शिवपुर थारो शुभथान ॥टेक॥लख चौरासी में बहु भटके, लह्यो न सुख को लेस ।मिथ्या रूप धरे बहुतेरे, भटके बहुत विदेस ॥१॥विषयादिक सेवत दुख पाये, भुगते बहुत कलेस ।भयो तिर्यंच नारकी नर सुर, करि करि नाना भेस ॥२॥अबतो निज में निज अवलोको, जहां न दुख को लेश ।'दौलतराम' तोड़ जग-नाता, सुनो सुगुरु उपदेस ॥जिया तुम चालो अपने देस, शिवपुर थारो शुभथान ॥३॥
अर्थ : हे जीव ! तुम अपने देश में चलो। शिवपुर (मोक्ष) ही तुम्हारा स्थान है और वह शुभ स्थान है ।
चौरासी लाख योनियों में बहुत भटक लिये, परंतु कहीं पर तनिक-सा भी सुख नहीं मिला । अनेक मिथ्यावेश-रूप तुमने धारण किए और अनेक विदेशों, जो तुम्हारे अपने देश नहीं है, में तुम भटकते रहे ।
इन्द्रिय-विषयों के कारण बहुत दुःख पाए और बहुत संक्लेश सहे । चारों गतियों - तिर्यञ्च, मनुष्य, नरक और स्वर्ग आदि में अनेक रूप में जन्म लिया ।
दौलतराम कहते हैं कि है जीव ! तुम सत्गुरु का उपदेश सुनो और इस जगत से अपना नाता / संबंध तोड़कर, अपने आत्मा को देख, वहाँ दुख जरा भी नहीं है ।