लाल कैसे जावोगे, असरनसरन कृपाल ॥टेक॥इक दिन सरस वसंतसमय में, केशव की सब नारी ।प्रभुप्रदच्छनारूप खड़ी ह्वै, कहत नेमिपर वारी ॥लाल कैसे जावोगे, असरनसरन कृपाल ॥१॥कुंकुम लै मुख मलत रुकमनी, रंग छिरकत गांधारी ।सतभामा प्रभुओर जोर कर, छोरत है पिचकारी ॥लाल कैसे जावोगे, असरनसरन कृपाल ॥२॥व्याह कबूल करो तौ छूटौ, इतनी अरज हमारी ।ओंकार कहकर प्रभु मुलके, छांड दिये जगतारी ॥लाल कैसे जावोगे, असरनसरन कृपाल ॥३॥पुलकितवदन मदनपित-भामिनि, निज निज मदन सिधारी ।'दौलत' जादववंशव्योम शशि, जयौ जगत हितकारी ॥लाल कैसे जावोगे, असरनसरन कृपाल ॥४॥
अर्थ : हे अशरण को शरण देनेवाले कृपालु लाल, अब कैसे (दूर) जाओगे! एक दिन बसंत ऋतु के सुहाने समय में कृष्ण की सब स्त्रियाँ (नेमिनाथ के) चारों ओर खड़ी हो गईं और नेमिनाथ पर निछावर होने की बात कहने लगीं।
रुक्मिणी प्रसन्न होकर कुंकुम लगाने लगी और गांधारी रंग छिड़कने लगी। सत्यभामा दोनों हाथ जोड़कर प्रभु नेमिनाथ की ओर पिचकारी छोड़ने लगी।
वे सब कहने लगी कि अब आप विवाह की स्वीकृति देने पर ही यहाँ से जा सकोगे - यह ही हमारी ओर से निवेदन है / प्रभु ने उकार शब्द का उच्चारण किया और मुस्कराए, तब प्रभु को जाने दिया गया।
तब प्रद्युम्न कामदेव की माता रुक्मिणी आदि अपने-अपने निवास पर चली गईं। दौलतराम कहते हैं कि यादव वंशरूपी गगन के चंद्रमा प्रभु नेमिनाथ को जय हो जो जगत का हित करनेवाले हैं।