प्रभु थारी आज महिमा जानी ॥टेक॥अबलौं मोह महामद पिय मैं, तुमरी सुधि विसरानी ।भाग जगे तुम शांति छवी लखि, जड़ता नींद बिलानी ॥प्रभु थारी आज महिमा जानी ॥१॥जगविजयी दुखदाय रागरुष, तुम तिनकी थिति भानी ।शांतिसुधा सागर गुन आगर, परमविराग विज्ञानी ॥प्रभु थारी आज महिमा जानी ॥२॥समवसरन अतिशय कमलाजुत, पै निर्ग्रन्थ निदानी ।क्रोधबिना दुठ मोहविदारक, त्रिभुवनपूज्य अमानी ॥प्रभु थारी आज महिमा जानी ॥३॥एकस्वरूप सकलज्ञेयाकृत, जग-उदास जग-ज्ञानी ।शत्रुमित्र सबमें तुम सम हो, जो दुखसुख फल यानी ॥प्रभु थारी आज महिमा जानी ॥४॥परम ब्रह्मचारी है प्यारी, तुम हेरी शिवरानी ।ह्वै कृतकृत्य तदपि तुम शिवमग, उपदेशक अगवानी ॥प्रभु थारी आज महिमा जानी ॥५॥भई कृपा तुमरी तुममें तैं, भक्ति सु मुक्ति निशानी ।ह्वै दयाल अब देहु 'दौल' को, जो तुमने कृति ठानी ॥प्रभु थारी आज महिमा जानी ॥६॥
अर्थ : हे प्रभो ! मैं आज आपकी महिमा को जान गया हूँ। अब तक मोहरूपी महामद का पान करके मैं आपके स्वरूप को भूला हुआ था, किन्तु आज मेरे भाग्य जगे हैं अर्थात् मेरा ऐसा पुण्योदय आया है जो कि मुझे आपकी शान्त मुद्रा के दर्शन हुये और जिससे मेरी अनादिकालीन जड़ता रूपी निद्रा दूर हो गई है।
हे प्रभो! आपने सारे संसार को जीत लेने वाले और महादुः:ख देने वाले राग-द्वेष को नष्ट कर दिया है अतः आप शान्तिरूपी अमृत के सागर हैं, गुणों के भण्डार हैं, परम वीतराग विज्ञान स्वरूप हैं।
हे प्रभो! यद्यपि समवशरण आदि अतिशय लक्ष्मी आप के संयोग में हैं, तथापि आप पूर्णतः निग्रन्थ अर्थात् अपरिग्रही हैं। आप क्रोध से रहित हैं, दुष्ट मोह के विनाशक हैं, और मान से रहित तीनों लोकों द्वारा पूज्य हैं।
हे प्रभो! आप केवलज्ञान में सकल ज्ञेय पदार्थों को जानते हुये भी एक स्वरूप में ही रहने वाले हैं, जगत से उदासीन रहकर भी सारे जगत के ज्ञाता हैं तथा दुःख-सुख के पल में निमित्तभूत ऐसे शत्रु-मित्र आदि को समान दृष्टि से देखने वाले हैं।
हे प्रभो! आप परम ब्रमचारी हैं, फिर भी आपने अत्यन्त प्रिय मुक्तिरानी को खोजकर प्राप्त किया है तथा आप कृतकृत्य हो गये हैं, फिर भी जगत के जीवों के लिये मोक्षमार्ग के अग्रणी उपदेशक हैं।
कविवर दौलतरामजी कहते हैं कि हे प्रभे! अब आपकी कृपा से मुझमें आपके प्रति भक्ति उत्पन्न हुई है जो कि मोक्ष का उत्तम दशा प्रदान कीजिये। हे प्रभो! आप दयालु होकर मुझे भी वही उत्तम दशा दीजिये, जो आपने अपने में प्रकट की है।