सब मिल देखो हेली म्हारी हे, त्रिसलाबाल वदन रसाल ॥टेक॥आये जुतसमवसरन कृपाल, विचरत अभय व्याल मराल,फलित भई सकल तरूमाल ॥सब मिल देखो हेली म्हारी हे, त्रिसलाबाल वदन रसाल ॥१॥नैन न हाल भृकुटी न चाल, वैन विदार विभ्रम जाल,छवि लखि होत संत निहाल ॥सब मिल देखो हेली म्हारी हे, त्रिसलाबाल वदन रसाल ॥२॥वंदन काज साज समाज, संग लिये स्वजन पुरजन वाज,श्रेणिक चलत है नरपाल ॥सब मिल देखो हेली म्हारी हे, त्रिसलाबाल वदन रसाल ॥३॥यों कहि मोदजुत पुरबाल, लखन चाली चरम जिनाल,'दौलत' नमत धर धर भाल ॥सब मिल देखो हेली म्हारी हे, त्रिसलाबाल वदन रसाल ॥४॥
अर्थ : हे मेरी सहेली! त्रिशला के पुत्र महावीर का सुंदर-सरस मुख सब मिलकर देखो।
उन कृपालु के समवसरन में आने पर मोर व सर्प भी अपना जातिगत विरोध छोड़कर निर्भय विचरण करते हैं और सभी वृक्षादि पर पुनः हरियाली छा गई है, फल आ गए हैं।
जिनके नैन नहीं हिलते, न भृकुटी ही चलायमान होती है, जिनकी दिव्यध्वनि भ्रम-जाल का नाश करती है और उस छवि को देख-देखकर संतजन अपने आपको धन्य समझते हैं।
श्रेणिक राजा उन त्रिशलानन्दन महावीर की वंदना करने के निमित्त अपने परिवारजनों, नागरिकों व समाज-समूह को साथ लिये चलकर आते हैं।
नगर के बालकवृंद भी प्रसन्न होकर, आनन्दित होकर जिन परमशरीरी जिनेन्द्रदेव के दर्शन हेतु चलकर आते हैं, उन्हें दौलतराम भी, अपने मस्तक पर धारण कर बार-बार नमन करते हैं।