विषयोंदा मद भानै, ऐसा है कोई वे ॥टेक॥विषय दु:ख अर दुखफल तिनको, यौं नित चित्त में ठानै ॥१॥अनुपयोग उपयोग स्वरूपी, तन चेतनको मानै ॥२॥वरनादिक रागादि भावतैं, भिन्न रूप तिन जानैं ॥३॥स्वपर जान रुषराग हान, निजमें निज परनति सानै ॥४॥अन्तर बाहर को परिग्रह तजि, `दौल' वसै शिवथानै ॥५॥
अर्थ : ऐसा जीव कोई विरला ही होता है जो विषयों के मद को चकनाचूर कर दे और सदैव अपने चित्त मे ऐसा भाव रखे कि ये विषय दुःखरूप है एव इनका फल भी दुःख ही है।
ऐसा जीव कोई विरला ही होता है जो शगैर को तो ज्ञान-दर्शन से रहित अनुपयोग-स्वरूपी मानता है और आत्मा को ज्ञान-दर्शन से सहित उपयोग-स्वरूपी मानता है। ऐसा ही जीव अपने स्वरूप को समस्त वर्णादि एवं रागादि भावों से भिन्न जानता है।
कविवर दौनतराम कहते है कि ऐसा जीव कोई विरला ही होता है जो स्व और पर को उक्त प्रकार से पृथक-पृथक् जानकर और राग-द्वेष का अभाव कर अपनी परिणति को अपने में ही लीन कर दे तथा समस्त बाह्याभ्यन्तर परिग्रह का त्याग करके मोक्ष में जा बसे।