मान न कीजिये हो परवीन ॥टेक॥जाय पलाय चंचला कमला, तिष्ठै दो दिन तीन ।धनजोवन क्षणभंगुर सब ही, होत सुछिन छिन छीन ॥१॥भरत नरेन्द्र खंड-षट-नायक, तेहु भये मद हीन ।तेरी बात कहा है भाई, तू तो सहज ही दीन ॥२॥'भागचन्द' मार्दव-रससागर, माहिं होहु लवलीन ।तातैं जगतजाल में फिर कहूँ, जनम न होय नवीन ॥३॥