मंगल आरती कीजे भोर, विघनहरन सुखकरन किरोर ।अरहंत सिद्ध सूरि उवझाय, साधु नाम जपिये सुखदाय ॥टेक॥नेमिनाथ स्वामी गिरनार, वासुपूज्य चम्पापुर धार ।पावापुर महावीर मुनीश, गिरि कैलास नमों आदीश ॥१॥शिखर समेद जिनेश्वर बीस, बंदों सिद्धभूमि निशिदीस ।प्रतिमा स्वर्ग मर्त्य पाताल, पूजों कृत्य अकृत्य त्रिकाल ॥२॥पंच कल्याणक काल नमामि, परम उदारिक तन गुणधाम ।केवलज्ञान आतमाराम, यह षटविधि मंगल अभिराम ॥३॥मंगल तीर्थकर चौबीस, मंगल सीमंधर जिन बीस ।मंगल श्रीजिनवचन स्साल, मंगल रतनत्रय गुनमाल ॥४॥मंगल दशलक्षण जिनधर्म, मंगल सोलहकारन पर्म ।मंगल बारहभावन सार, मंगल संघ चारि परकार ॥५॥मंगल पूजा श्रीजिनराज, मंगल शास्त्र पढ़े हितकाज ।मंगल सतसंगति समुदाय, मंगल सामायिक मन लाय ॥६॥मंगल दान शील तप भाव, मंगल मुक्ति वधू को चाव ।'द्यानत' मंगल आठौँ जाम, मंगल महा मुक्ति जिनस्वाम ॥७॥
अर्थ : हे भव्य ! प्रात:काल सर्वमंगलकारी आरती कीजिए, वह सब विघ्नों को हरनेवाली है और करोड़ों सुख करनेवाली है। सदैव अर्हत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु का सुखकारी, सुख देनेवाले नाम का जाप कीजिए ।
तीर्थकर नेमिनाथ गिरिनार पर्वत से, चम्पापुर से तीर्थंकर वासुपूज्य, पावापुर से मुनिनाथ श्री महावीर और कैलाश पर्वत से भगवान आदीश्वर मोक्ष गये हैं अत: इन सिद्धक्षेत्रों को नमन करो।
सम्मेद शिखर से बीस जिनेश्वर मोक्ष गए हैं। इन सिद्धभूमियों की सदैव, दिन-रात वंदना करो। स्वर्ग, मध्यलोक-लोक व अधोलोक में जितनी भी कृतिक अकृत्रिम प्रतिमाएँ हैं उनकी तीनों काल अर्थात् सदैव पूजा करो ।
तीर्थकरों के पाँचों कल्याणकों के समय को नमन करो। केवलज्ञानमय आत्मा को नमन करो-ये छहों मंगलकारी हैं, उद्धार करनेवाले हैं, गुणों के धाम हैं ।
चौबीस तीर्थंकर मंगल हैं। विदेह क्षेत्र स्थित सीमंधर आदि बीस तीर्थंकर मंगल हैं। उनकी दिव्यध्वनि मंगल है। रत्नत्रय की गुणमाल मंगल है। दशलक्षणधर्म व सौलहकारण भावनाएँ मंगल हैं । बारह भावनाएँ व चार प्रकार के संघ मंगल हैं।
श्री जिनराज की पूजा मंगल है । शास्त्रों का स्वाध्याय मंगल है । सज्जन पुरुषों का समुदाय और उनकी संगति मंगल है। सामायिक में मन लगाना मंगल है।
दान, शील, तप की भावना मंगल है। मोक्ष की कामना मंगल है । द्यानतराय कहते हैं कि इनका आठों प्रहर स्मरण मंगलकारी है। महान, मुक्ति के स्वामी, मोक्ष के स्वामी जिनेन्द्र मंगलकारी हैं ।