Jain Radio
Close

Play Jain Bhajan / Pooja / Path

Radio Next Audio
nikkyjain@gmail.com

🙏
श्री
Click Here

देव

शास्त्र

गुरु

धर्म

तीर्थ

कल्याणक

महामंत्र

अध्यात्म

पं दौलतराम कृत

पं भागचंद कृत

पं द्यानतराय कृत

पं सौभाग्यमल कृत

पं भूधरदास कृत

पं बुधजन कृत

पं मंगतराय कृत

पं न्यामतराय कृत

पं बनारसीदास कृत

पं ज्ञानानन्द कृत

पं नयनानन्द कृत

पं मख्खनलाल कृत

पं बुध महाचन्द्र

सहजानन्द वर्णी

पर्व

चौबीस तीर्थंकर

बाहुबली भगवान

बधाई

दस धर्म

बच्चों के भजन

मारवाड़ी

selected

प्रारम्भ

नित्य पूजा

तीर्थंकर

पर्व पूजन

विसर्जन

पाठ

छहढाला

स्तोत्र

ग्रंथ

आरती

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

Youtube -- शास्त्र गाथा

Youtube -- Animations

गुणस्थान

कर्म

बंध

प्रमाण

Other

Download

PDF शास्त्र

Jain Comics

Print Granth

Kids Games

Crossword Puzzle

Word Search

Exam


भाई कहा देख गरवाना रे
Karaoke :
राग : काफी

भाई! कहा देख गरवाना रे ॥
गहि अनन्त भव तैं दुख पायो, सो नहिं जात बखाना रे ॥टेक॥

माता रुधिर पिता के वीरज, तातैं तू उपजाना रे ।
गरभ वास नवमास सहे दुख, तल सिर पांव उचाना रे ॥
भाई! कहा देख गरवाना रे ॥१॥

मात अहार चिगल मुख निगल्यो, सो तू असन गहाना रे ।
जंती तार सुनार निकालै, सो दुख जनम सहाना रे ॥
भाई! कहा देख गरवाना रे ॥२॥

आठ पहर तन मलि-मलि धोयो, पोष्यो रैन बिहाना रे ।
सो शरीर तेरे संग चल्यो नहिं, खिनमें खाक समाना रे ॥
भाई! कहा देख गरवाना रे ॥३॥

जनमत नारी, बाढ़त भोजन, समरथ दरब नसाना रे ।
सो सुत तू अपनो कर जाने, अन्त जलावै प्राना रे ॥
भाई! कहा देख गरवाना रे ॥४॥

देखत चित्त मिलाप हरै धन, मैथुन प्राण पलाना रे ।
सो नारी तेरी ह्वै कैसे, मूवें प्रेत प्रमाना रे ॥
भाई! कहा देख गरवाना रे ॥५॥

पांच चोर तेरे अन्दर पैठे, ते ठाना मित्राना रे ।
खाय पीय धन ज्ञान लूटके, दोष तेरे सिर ठाना रे ॥६॥

देव धरम गुरु रतन अमोलक, कर अन्तर सरधाना रे ।
'द्यानत' ब्रह्मज्ञान अनुभव करि, जो चाहै कल्याना रे ॥७॥



अर्थ : अरे भाई ! क्या देखकर तुम इतना गर्व कर रहे हो! अनन्त भव धारणकर तुमने जो दुख पाया है, उन दुखों का वर्णन किया जाना संभव नहीं है।

माता के रज, पिता के वीर्य से तेरी उत्पत्ति हुई, गर्भ में नौ महीने दुःख पाए, जहाँ सिर नीचे तथा पाँव ऊपर किये रहे।

गर्भवास में माता ने मुँह से चबाकर जो आहार निगला वह भोजन ही तुझे खाने को मिला। जैसे सुनार जंत्री में तार खींचता है, जन्म के समय उसी प्रकार गर्भ से बाहर निकला और दुःख भोगे।

आठों पहर इस शरीर को स्वच्छता के लिए बार-बार तन धोता रहता है, नहाता रहता है और दिन और रात इसके पोषण में लगा रहता है । वह शरीर तेरे साथ नहीं चलता और क्षणमात्र में खाक में मिल जाता है।

यह देह स्त्री के द्वारा उत्पन्न की जाती है, भोजन के द्वारा यह बढ़ती है, बड़ी होती है। तू जिस पुत्र को अपना जानता है वही तुझे, तेरी इस देह को अन्त में जला देता है।

स्त्री जो देखते ही चित्त का हरण कर लेती है, उससे मिलाप होता है तो धन हर लेती है और मैथुन में शक्ति का हरण कर होती है। मरते ही जो तुझे प्रेत समान मानने लगती है वह नारी तेरी कैसे है?

पाँच चोर (इन्द्रियाँ) तेरे भीतर बैठे हैं उनसे तूने मित्रता कर रखी है । वे खा-पीकर के, तेरे ज्ञान-धन का नाश करके, सारा दोष तेरे ही सिर मँढ देंगे ।

अरे! देव, धर्म, गुरु ये अनमोल रत्न हैं। इनमें अंतरंग से श्रद्धा कर। द्यानतराय कहते हैं कि जो तू अपना कल्याण चाहता है तो ब्रह्मज्ञान का, अपनी आत्मा का अनुभव कर ।