मगन रहु रे! शुद्धातम में मगन रहु रे ॥टेक॥रागदोष पर की उतपात, निहचै शुद्ध चेतनाजात ॥मगन रहु रे! शुद्धातम में ॥१॥विधि निषेध को खेद निवारि, आप आपमें आप निहारि ॥मगन रहु रे! शुद्धातम में ॥२॥बंध मोक्ष विकलप करि दूर, आनंदकन्द चिदातम सूर ॥मगन रहु रे! शुद्धातम में ॥३॥दरसन ज्ञान चरन समुदाय, 'धानत' ये ही मोक्ष उपाय ॥मगन रहु रे! शुद्धातम में ॥४॥
अर्थ : हे भव्य! अपने शुद्ध आत्म-स्वभाव में, उसके स्वरूप चिन्तन में तुम मगन रहो ।
ये राग-द्वेष तो परद्रव्य के विकार हैं, उपद्रव हैं । निश्चय में तो तुम्हारी जाति चेतन ही है ।
अस्ति-नास्ति के विकल्प को दूर करके, समस्त दु:खों का निवारण कर । अपने आप में केवल अपने आत्म-स्वरूप का चिन्तन करो, उसे ही निरखो, देखो और जानो-पहचानो ।
कर्मबंध और मोक्ष, दोनों का विकल्प छोड़ दो। तब सभी विकल्प से पर यह अपना चिदात्म आनन्द का पुंज, सूर्य के समान अनुभव में आएगा ।
द्यानतराय कहते हैं कि दर्शन, ज्ञान और चारित्र का सम्यक होना और उनका एकत्व होना ही मोक्ष का उपाय है ।