खेलौंगी होरी, आये चेतनराय ॥टेक॥दरसन वसन ज्ञान रँग भीने, चरन गुलाल लगाय ॥खेलौं...१॥आनँद अतर सुनय पिचकारी, अनहद बीन बजाय ॥खेलौं...२॥रीझौं आप रिझावौं पियको, प्रीतम लौं गुन गाय ॥खेलौं...३॥'द्यानत' सुमति सुखी लखि सुखिया, सखी भई बहु भाय ॥खेलौं...४॥
अर्थ : हम आज होली खेलेंगी; क्योंकि हमारे स्वामी चिदानन्द घर आये हुए हैं।
सुमति सोचती है-- अब मिथ्यात्वरूपी शिशिर चली गयी है और काल-लब्धि रूपी वसन्त का आगमन हो गया है। मैं आज होली खेलूँगी; क्योंकि हमारे स्वामी चिदानन्द आज घर आये हुए हैं।
सखियों, हम लोग अपने प्रियतम के साथ होली खेलने के लिए न जाने किसने दिनों से तरस रही थीं। आज हमारे सौभाग्य-सूर्य का उदय हुआ है जो हमारे चिर-विरह का अन्त हुआ और हम अपने प्रियतम के साथ होली खेलने के लिए अपने को तैयार पा रही हैं।
सखियों, हम लोग तुरन्त ही श्रद्धा-गगरी में रुचिरूपी केसर घोल दें, जिसमें आनन्द-नीर भरा हुआ हो और इस रंजित नीर को उमंग-पिचकारी में भरकर खूब ही प्रियतम के ऊपर छोडें।
आज कुमतिरूपी सौत का विछोह है और सुमति के मन में इसीलिए उल्लास और प्रसन्नता का पारावार हिलोरें ले रहा है। वह सोचती है-- धन्य है आज का यह दिन। कितनी दीर्घ प्रतीक्षा के बाद मिला है यह दिन!