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हो भविजन ज्ञान सरोवर सोई
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हो भविजन ज्ञान सरोवर सोई ।
भूमि छिमा करुना मरजादा, समरस जल जहं होई ॥टेक॥

परनति लहर हरख जलचर बहु, नय पंकति परकारी ।
सम्यक कमल अष्टदल गुण हैं, सुमन भंवर अधिकारी ॥१॥

संजम शील आदि पल्लव हैं, कमला सुमति निवासी ।
सुजस सुवास कमल परिचयतैं, परसत भ्रम तम नासी ॥२॥

भवमल जात न्हात भविजन को, होत परमसुख साता ।
'द्यानत' यह सर और न जानैं, जानैं बिरला ज्ञाता ॥३॥



अर्थ : हे भव्य पुरुष! देखो ज्ञानरूपी सरोवर शोभायमान है। यह सरोवर वहीं है जहाँ क्षमारूपी भूमि (आधार) है, करुणारूपी सीमाएँ (मर्यादाएँ) हैं और उसमें चंचलतारहित समतारूपी जल विद्यमान है ।

ऐसे सरोवर में शुभ परिणामों की लहरों में हर्षरूपी जलचर होते हैं और विभिन्न नयों के कमल सुशोभित हैं । उस ज्ञान-सरोवर में अनेक प्रकार के पंकज (कमल) सुशोभित हो रहे हैं । आठ पाँखुड़ी (गुणों) के सम्यक्त्वरूपी कमल प्रफुल्लित हैं, जिन पर (अच्छे मनवाले) भविकजन (भ्रमर) लुब्ध होकर अधिकारपूर्वक स्वच्छंद मँडरा रहे हैं ।

ऐसे कमल दल के संयम और शीलरूप पल्लव है, पत्ते हैं । वहाँ सुमति अर्थात् विवेक-लक्ष्मी का आवास है । ऐसे कमलों की सुगंध दूर-दूर तक फैलकर सुयश बढ़ा रही है। उनका कोमल स्पर्श संशय अर्थात् भ्रमरूपी तपन को नष्ट कर रहा है।

उस सरोवर में स्नान करने से भवरूपी मल से छुटकारा होकर परमशांति की प्राप्ति होती है। धानतराय कहते हैं कि ऐसे ज्ञानरूपी सरोवर की थाह कोई बिरला ही ले पाता है, बिरला ही जान पाता है ।