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धिक धिक जीवन
Karaoke :

धिक! धिक! जीवन समकित बिना
दान शील तप व्रत श्रुतपूजा,
आतम हेत न एक गिना ॥

ज्यों बिनु कन्त कामिनी शोभा,
अंबुज बिनु सरवर ज्यों सुना ।
जैसे बिना एकड़े बिन्दी,
त्यों समकित बिन सरब गुना ॥१॥

जैसे भूप बिना सब सेना,
नीव बिना मन्दिर चुनना ।
जैसे चन्द बिहूनी रजनी,
इन्हैं आदि जानो निपुना ॥२॥

देव जिनेन्द्र, साधु गुरू, करुना,
धर्मराग व्योहार भना ।
निहचै देव धरम गुरु आतम,
'द्यानत' गहि मन वचन तना ॥३॥



अर्थ : जिसके जीवन में सम्यक्त्व जागृत नहीं हुआ उसका जीवन को धिक्कार है। जिसके बिना दान, शील, तप, व्रत, श्रुतपूजा -- ये सब कार्यकारी नहीं होते।
जैसे बिना पति के स्त्री की शोभा नहीं होती, जैसे कमल दल के बिना सरोवर की शोभा नहीं होती; यह ठीक वैसा ही है कि जैसे किसी अंक के बिना शून्य (बिन्दी) का कोई महत्त्व नहीं होता। उसी प्रकार सम्यक्त्व के बिना, दूसरे सभी गुणों का कोई महत्व नहीं होता।
हे ज्ञानी! इसे ऐसे ही जानो कि जैसे राजा के बिना सेना, नींव के बिना किसी मन्दिर का निर्माण, जैसे चन्द्रमा बिना रात्रि सुशोभित नहीं होती।
व्यवहार से जिनेन्द्रदेव, साधुगण, करुणा, धार्मिक अभिरुचि को धर्म कहा गया है । द्यानतराय कहते हैं कि निश्चय से अपनी आत्मा ही देव है, धर्मगुरु है, उसकी ही मन-वचन-काय से विवेकपूर्वक आराधना कर।