भाई! कौन धरम हम पालें ...एक कहैं जिहि कुलमें आये, ठाकुर को कुल गा लैं ॥भाई! कौन धरम हम पालें ... ॥१॥शिवमत बौध सु वेद नयायक, मीमांसक अरु जैना ।आप सराहैं आतम गाहैं, काकी सरधा ऐना ॥भाई! कौन धरम हम पालें ...॥२॥परमेसुरपै हो आया हो, ताकी बात सुनी जै ।पूछैं बहुत न बोलैं कोई, बड़ी फिकर क्या कीजै ॥भाई! कौन धरम हम पालें ...॥२॥जिन सब मत के मत संचय करि, मारग एक बताया ।'द्यानत' सो गुरु पूरा पाया, भाग हमारा आया ॥भाई! कौन धरम हम पालें ...॥३॥
अर्थ : अरे भाई! हम किस धर्म के अनुयायी बनें? किस धर्म का पालन करें? एक कहता है कि जिस कुल में जन्म लिया, उस कुल के धर्म को क्यों छोड़ें!
शैव, बुद्ध, वैदिक, नैयायिक, मीमांसक और जैन सब अपने-अपने को सर्वोपरि व सच्चा बताते हैं, तब किस की श्रद्धा करें?
जिसने परमात्म पद प्राप्त कर लिया है, उसकी बात सुनो / सबको पूछो - बोलो कुछ मत । फिर किसको चिन्ता करना ।
जिनेन्द्र / तीर्थंकर ने सबके मत की समीक्षाकर साररूप में एक ही मार्ग बताया हैं । द्यानतराय कहते हैं कि अत: उन्हें ही पूर्ण (जिसमें कोई कमी न हो) गुरु पाया। यह हमारा सौभाग्य है कि हमने ऐसा गुरु पा लिया ।