जब बानी खिरी महावीर की तब, आनंद भयो अपार ।सब प्रानी मन ऊपजी हो, धिक धिक यह संसार ॥टेक॥बहुतनि समकित आदी हो, श्रावक भरें अनेक ।घर तजकैं बहु बन गये हो, हिरदै धर्यो विवेक ॥जब बानी खिरी महावीर की तब, आनंद भयो अपार ॥१॥केई भाव भावना हो, केई गहँ तप घोर ।केई जमैं प्रभु नामको ज्यों, भाजें कर्म कठोर ॥जब बानी खिरी महावीर की तब, आनंद भयो अपार ॥२॥बहुतक तप करि शिव गये हो, बहुत गये सुरलोक ।'द्यानत' सो वानी सदा ही, जयवन्ती जग होय ॥जब बानी खिरी महावीर की तब, आनंद भयो अपार ॥३॥