ज्यों सरवर में रमै माछली, त्यों भव सागर में प्राणी,काल अनन्त गमायो रमता, अब तो सुध ले सैलानी ॥टेक॥क्रोध मान माया ममता का लोभी अजगर धूम रह्या,पाप भंवर में तने फँसावा खातर पद-पद झूम रह्या,सप्त व्यसन की सुरा सुन्दरी, तनै रिझा रही अज्ञानी ॥काल अनन्त गमायो रमता, अब तो सुध ले सैलानी ॥१॥राग द्वेष की मोटी लहरों अरे तने झकझोर रही,चार गति में डुला डुला कर दिखा प्रेम की ठोर रही,नरक वेदना सूँ डर प्यारा अब तो तज दे मनमानी ॥काल अनन्त गमायो रमता, अब तो सुध ले सैलानी ॥२॥तू चेतन चिद्रूप स्वयंभू, ज्ञाता दृष्टा अजर अमर,रूप गंध रस वरण आदि सब हैं, अनित्य जड़ पुद्गल पर,निज स्वरूप में तमन्य होकर, हृदय धार ले जिनवानी ॥काल अनन्त गमायो रमता, अब तो सुध ले सैलानी ॥३॥वीतराग सा दर्शन पावन, जन्म जरा मृत्यु नाशक,मंगल उत्तम शरण गही जग, दोनो संयम शिव साधन,रत्नत्रय 'सौभाग्य' धारकर अब तो तरजा बैतरणी ॥काल अनन्त गमायो रमता, अब तो सुध ले सैलानी ॥४॥