आओ सत्य धरम उपवन में, हिल मिल रमल्याँ थोड़ी वार ॥टेक॥पद पद पर सुन्दर है क्यारी, एक दूसरी सूँ सब न्यारी, कली कली घूंघट पट खोल्यो, म्हानै रही पुकार ॥आओ सत्य धरम उपवन में, हिल मिल रमल्याँ थोड़ी वार ॥१॥पौध लता तरु भिन्न भिन्न है, धरा एक नहीं कोई खिन्न है, रूप रंग रस पृथक-पृथक, त्यों निज पर करो विचार ॥आओ सत्य धरम उपवन में, हिल मिल रमल्याँ थोड़ी वार ॥२॥झूठ कपट तज मायाचारी, सत्य सुधा आतम हितकारी, राग द्वेष तज हित मित भाषी, त्याग झूठ संसार ॥आओ सत्य धरम उपवन में, हिल मिल रमल्याँ थोड़ी वार ॥३॥उत्तम क्षमा की जननी गाई, दया अहिंसा है माँ जाई, इस मंगल प्रद सत्य धर्म की, विश्व करे जयकार ॥आओ सत्य धरम उपवन में, हिल मिल रमल्याँ थोड़ी वार ॥४॥भवदधि पड्यो सरसों को दाणों, बड़ो कठिन है पाछो आणो, नरभव को 'सौभाग्य' समझ ले, मिले न बारम्बार ॥आओ सत्य धरम उपवन में, हिल मिल रमल्याँ थोड़ी वार ॥५॥