स्वामी तेरा मुखड़ा है मन को लुभाना,स्वामी तेरा गौरव है मन को डुलानादेखा ना ऐसा सुहाना-२ ॥स्वामी॥ये छवि ये तप त्याग जगत का, भाव जगाता आतम बल काहरता है नरकों का जाना-२ ॥स्वामी॥जो पथ तूने है अपनाया, वो मन मेरे भी अति भायापाऊँ मैं तुम पद लुभाना-२ ॥स्वामी॥पंचम गति का मैं वर चाहूँ, जीवन का “सौभाग्य'' दिपाऊँगूँजे हैं अंतर तराना-२ ॥स्वामी॥