तर्ज : आए हो मेरी जिंदगी मेंइंसाफ की डगर पे बच्चों
अध्यात्म के शिखर पर, सबको दिखादो चढ़के । ये धर्म है निरापद, धारो हृदय से बढ़के ॥टेक॥जड से लगा के प्रीति, अब तक करी अनीति ।अपने को आप देखो, आतम से जोड़ो रीति ॥भव-भ्रमण से बचोगे, सन्मार्ग को पकड के ॥१॥भव-भोग रोग घर है, पद-पद पे इसमे डर है ।रागादि भाव तज दो, नरकों के ये भंवर है ।ऊँचे तुम्हे है उठना, माया से युद्ध लडके ॥२॥ज्यों अंजुली का पानी, ढलती है जिन्दगानी । मश्किल है हाथ लगना, ऐसी घडी सुहानी ।'सौभाग्य' सज ले माला, रत्नत्रय की घड के ॥३॥