कोई जब साथ न आये, ना संग में जाये ।तो फिर क्यों प्रीत बढ़ाये, झूठी ममता में पड़ यार ॥टेक॥तू तेरा ले रूप पिछान, तन तेरा नही है नादान ।काया है पुद्गल, तू चेतन है, मान ।ज्ञाता-दृष्टा कहलाये, क्यों बोध भुलाये ॥तो फिर क्यों प्रीत बढ़ाये, झूठी ममता में पड़ यार ॥1॥अब भी समय है प्यारे मान, पुण्य घड़ी मत बिसर अजान ।आतम निधि यह, शिव सुख खान ।जीवन सार कमाले 'सौभाग्य' पद पाले ॥तो फिर क्यों प्रीत बढ़ाये, झूठी ममता में पड़ यार ।कोई जब साथ न आये, ना संग में जाये ॥2॥