तोड़ विषयों से मन जोड़ प्रभु से लगन,आज अवसर मिला ॥टेर॥रंग दुनियां के अब तक न समझा है तूभूल निज को हा! पर मैं यों रीझा है तूअब तो मुँह खोल चख, स्वाद आतम का लख, शिव पयोधर मिला ॥१॥हाथ आने की फिर ये सु-घड़ियाँ नहींप्रीति जड़ से लगाना है अच्छा नहींदेख पुद्गल का घर, नहीं रहता अमर, जग चराचर मिला ॥२॥ज्ञान ज्योति हृदय में अब तो जगादेख 'सौभाग्य' जग में न कोई सगातजदे मिथ्या भरम, तुझे सच्चे धरम का, है अवसर मिला ॥३॥