दया कर दो मेरे स्वामी तेरे दरबार आया हूँ,चढ़ाने फूल श्रद्धा के तुम्हारे द्वार लाया हूँ ॥सताया अष्ट कर्मों ने शिकायत क्या करूँ उनकी,बढ़ाई प्रीत मैंने खुद खता इसमें है क्या इनकी,मदद करके बचा लीजे मैं बाजी हार आया हूँ ॥दया कर दो मेरे स्वामी तेरे दरबार आया हूँ ॥१॥इन्ही कर्मों ने सीता को कहाँ से कहाँ पहुचाया,सती थी अंजना उसको भी वन-वन खूब भटकाया,मिटाया उनका संकट मैं भी कर एतबार आया हूँ ॥दया कर दो मेरे स्वामी तेरे दरबार आया हूँ ॥२॥मैं हूँ नादाँ हठी स्वामी मेरी गलती पे मत जाओ,महर करके किसी दिन तो मेरे ख्वाबों में आ जाओ,बड़ी उम्मीद से पाने को मैं दीदार आया हूँ ॥दया कर दो मेरे स्वामी तेरे दरबार आया हूँ ॥३॥सुना है पापियों को तुम किनारे पर लगा देते,करिश्मा तो हो जब मुझ जैसे पापी को तिरा देते,फिरा मैं दर बदर 'पंकज', हुआ लाचार आया हूँ ॥दया कर दो मेरे स्वामी तेरे दरबार आया हूँ ॥४॥