मन महल में दो दो भाव जगे, इक स्वभाव है, इक विभाव हैअपने-अपने अधिकार मिले, इक स्वभाव है, इक विभाव है ॥बहिरंग के भाव तो पर के हैं, अंतर के स्वभाव सो अपने हैंयही भेद समझले पहले जरा, तू कौन है तेरा कौन यहाँतू कौन है तेरा कौन यहाँ ॥१॥तन तेल फुलेल इतर भी मले, नित नवला भूषण अंग सजेरस भेद विज्ञान न कंठ धरा नहीं सम्यक् श्रद्धा साज सजेनहीं सम्यक् श्रद्धा साज सजे ॥२॥मिथ्यात्व तिमिर के हरने को, अक्षय आतम आलोक जगाहे वीतराग सर्वज्ञ प्रभो, तब दर्शन मन 'सौभाग्य' पगातब दर्शन मन 'सौभाग्य' पगा ॥३॥