मैं हूँ आतमराम, मैं हूँ आतमराम,सहज स्वभावी ज्ञाता दृष्टा चेतन मेरा नाम ॥टेर॥कुमति कुटिल ने अब तक मुझको निज फंदे में डालामोहराज ने दिव्य ज्ञान पर, डाला परदा कालाडुला कुगति अविराम, खोया काल तमाम ॥१॥जिन दर्शन से बोध हुआ है मुझको मेरा आजपर द्रव्यों से प्रीति बढ़ा निज, कैसे करूँ अकाजदूर हटो जग काम, रागादिक परिणाम ॥२॥आओ अंतर ज्ञान सितारो, आतम बल प्रगटा दोपंचम-गति 'सौभाग्य' मिले प्रिय आवागमन छुड़ा दोपाऊँ सुख ललाम, शिवस्वरूप शिवधाम ॥३॥