प्राणां सूं भी प्यारी लागे, वाणी श्री भगवान की । शासन नायक महावीर प्रभु मंगल रूप महान की ॥टेक॥वस्तु स्वरूप प्रकाशक दिनकर, मिथ्या मोह अज्ञान हर ।भ्रमतम नाशी, हितमित भाषी, समतासागर पावन तर ॥प्राणां सूं भी प्यारी लागे, वाणी श्री भगवान की ॥१॥राग रोधनी स्वपर बोधनी, आत्म शोधनी जिनवानी । श्रावण की पहली एकम ने, खिरी वीर की कल्याणी ॥प्राणां सूं भी प्यारी लागे, वाणी श्री भगवान की ॥२॥ विपुलाचल की धन्य धरा पर, इन्द्रभूति गणधर झेली ।कुंदकुंद आचार्य लिपि सूं, आज विश्व में जो फैली ॥प्राणां सूं भी प्यारी लागे, वाणी श्री भगवान की ॥३॥आओ ईने कंठ धार कर नर जीवन ने सफल करां । दूर हटा अज्ञान विश्व सूं, ज्ञान सुखद 'सौभाग्य' वरां ॥प्राणां सूं भी प्यारी लागे, वाणी श्री भगवान की ॥४॥