लागे सत्य सुमन बिन खारी, सारी जीवन की क्यारी ।झूठ कपट छल आक धतूरा, काम थोर काँटा सू पूरा, फूल्या घेर घुमेर चाह बिन मन धरसी थारी ॥लागे सत्य सुमन बिन खारी, सारी जीवन की क्यारी ॥१॥लाल बोराँ की झाड़ी ऊपर कोमल अन्तर भारी, फूल तो काँटा छिद जावे पोर आंगल्या सारी ॥लागे सत्य सुमन बिन खारी, सारी जीवन की क्यारी ॥२॥स्व स्वरूप की परख सत्य है, जड़ अनित्य चैतन नित्य है, गंध हीन टेसू सू प्यारा, मत कर तू यारी ॥लागे सत्य सुमन बिन खारी, सारी जीवन की क्यारी ॥३॥झूठन से भी झूठ बुरी है, मिथ्या दरसन पाप धुरी है, वीतराग सत सुमन संजोले अक्षय फुलवारी ॥लागे सत्य सुमन बिन खारी, सारी जीवन की क्यारी ॥४॥बार-बार मानव कुल धरणी, देह निरोगी उत्तम करणी, कठिन श्रेष्ठ 'सौभाग्य' मिलन है, आगम हितकारी ॥लागे सत्य सुमन बिन खारी, सारी जीवन की क्यारी ॥५॥