तर्ज : मूंजी धरी रहे ली पूंजी - रसियां परमगुरु बरसात ज्ञान झरी
करम गति टारी नाहिं टरे, करो कोई लाखों उपाया, जंत्र मंत्र तंत्र नहीं लागे, भूलो हि खेद करे।सेठ सुदर्शन प्रतमा धारी सूली जाहि धरे, श्रीपाल से शुद्ध समदृष्टि, सागर माँहि परे ॥करम गति टारी नाहिं टरे ॥१॥रावण राय महा अभिमानी, मरत हि नरक पड़े, छप्पन कोटि परिवार कृष्ण का, वन में जाय मरे ॥करम गति टारी नाहिं टरे ॥२॥रामचन्द्र तो शिव के गामी, वन वन भ्रमत फिरे, सीता नारि सतीन में शिरोमणि, जलती अग्नि परे ॥करम गति टारी नाहिं टरे ॥३॥भरत बाहुबली दोनों भ्राता, कैसे युद्ध करे, हनुमान की माता अंजनी, वन में दुख सहे ॥करम गति टारी नाहिं टरे ॥३॥पाण्डव पुत्र अर्जुन की त्रिया, जाको चीर हरे, कृष्ण रुकमणि का सुत प्रद्युम्न, जन्मत देव हरे ॥करम गति टारी नाहिं टरे ॥४॥कित फंदा कित रहत पार धी, कितहुँ मृग चरे, कहा जमी को घाटो पड गयो, फंद में पाव धरे ॥करम गति टारी नाहिं टरे ॥५॥कहाँ लग साख दीजिये, इनकी लिखत हि ग्रन्थ भरे, 'भूधर' प्रभु से अरज करतु है, आवा गमन हरे ॥करम गति टारी नाहिं टरे ॥६॥