जिनराज ना विसारो, मति जन्म वादि हारो ।नर भौ आसान नाहिं, देखो सोच समझ वारो ॥टेक॥सुत मात तात तरुनी, इनसौं ममत निवारो ।सबहीं सगे गरजके, दुखसीर नहिं निहारो ॥१ जिन...॥जे खायं लाभ सब मिलि, दुर्गति में तुम सिधारो ।नट का कुटंब जैसा यह खेल यों विचारो ॥२ जिन...॥नाहक पराये काजै, आपा नरक में पारो ।'भूधर' न भूल जगमैं, जाहिर दगा है यारो ॥३ जिन...॥
अर्थ : हे जीव! श्री जिनराज को कभी न भूलो।
अपने जनम को वृथा / निरर्थक न करो। यह नरभव आसान नहीं है, इसका विवेकपूर्वक उपयोग करो। पुत्र, माता, पिता, स्त्री इनसे ममत्व छोड़ो। ये सब अपने स्वार्थ के साथी हैं।
आपके दुःख व पीड़ा में ये साथी नहीं होते, सहयोगी भी नहीं होते। लाभ के समय सब मिल जाते हैं और दुर्गति में, दुःख में तुम अकेले होते हो। यह कुटुंब नट का-सा खेल है। इस तथ्य पर तनिक विचार करो।
व्यर्थ ही दूसरों के कार्यवश स्वयं को नरकगति में डालते हो । भूधरदास कहते हैं कि यह जगत सरासर/प्रत्यक्षतः एक धोखा है, इस सत्य को तनिक भी मत भूलो।