सब विधि करन उतावला, सुमरनकौं सीरा ।सुख चाहै संसार में, यों होय न नीरा ॥टेक॥जैसे कर्म कमावे है, सो ही फल वीरा ।आम न लागै आकके, नग होय न हीरा ॥१॥जैसा विषयनिकों चहै न रहै छिन धीरा ।त्यों 'भूधर' प्रभुकों जपै, पहुँचे भव तीरा ॥२॥
अर्थ : हे मनुष्य! तू और सब कार्य करने के लिए तो अत्यन्त उतावला व अधीर रहता है, परन्तु प्रभु स्मरण के लिए आलसी अर्थात् ढीला व सुस्त रहता है ।
यदि संसार में सुख चाहता है तो तू इस प्रकार अज्ञानी / अविवेकी मत बन।। तू जैसे कार्य करेगा, उसके अनुसार ही तुझे फल प्राप्त होंगे। आकड़े के पेड़ में आम के फल कभी नहीं लगते और न सभी नग (पत्थर) हीरा होते हैं।
तू जिसप्रकार विषयों को चाहता है और उनके लिए एक क्षण भी धैर्य धारण नहीं करता, यदि उसीप्रकार उतनी ही उत्सुकता से तू प्रभु का नाम जपे तो शीघ्र ही इस भवसागर के पार पहुँच जाय ।