सुनि सुजान! पांचों रिपु वश करि, सुहित करन असमर्थ अवश करि ।जैसै जड़ खखार का कीड़ा, सुहित सम्हाल सकैं नहिं फंस करि ।पांचन को मुखिया मन चंचल, पहले ताहि पकर, रस कस करि ।समझ देखि नायक के जीतै, जै है भाजि सहज सब लशकरि ॥१॥इंद्रियलीन जनम सब खोयो, बाकी चल्यो जात है खस करि ।'भूधर' सीख मान सतगुरु की, इनसों प्रीति तोरि अब वश करि ॥२॥
अर्थ : हे ज्ञानी सुनो ! अपना हित करने के लिए पाँचों इन्द्रियरूपी शत्रुओं को शक्तिहीन-बलहीन कर अपने वश में करो। जैसे खखार अर्थात् थूके गए कफ में फंसा हुआ कीड़ा अपने को असहाय्य पाता है, अपने हित को नहीं संभाल पाता वैसे ही इन इन्द्रिय-विषयों में फंसे होने के कारण जीव अपना हित करने में असमर्थ होता है, बेबस हो जाता हैं।
इन पाँचों इंद्रियों का मुखिया यह चंचल मन है। सबसे पहले उसे पकड़, वश में कर फिर रस अर्थात् स्वाद को/जीभ को कस ( वश में कर)। अपने नायक को जीत लिया ( हारा हुआ) जानकर इसकी सारी सेना सहज ही हार स्वीकार कर लेगी, कमज़ोर पड़ जायेगी, भाग जायेगी।
इन्द्रियों के वशीभूत होकर सास जन्म वृथा हो खो दिया, और शेष जीवन भी इस ही भाँति सरकता जा रहा है, बीतता जा रहा है। भूधरदास कहते हैं तू सत्गुरु की सीख को मान और इन इन्द्रिय-विषयों से प्रीति तोड़कर इनको अपने वश में करले।