अजित जिनेश्वर अघहरणं, अघहरणं अशरन-शरणं ॥निरखत नयन तनक नहिं त्रिपते, आनंदजनक कनक-वरणं ॥करुणा भीजे वायक जिनके, गणनायक उर आभरणं ।मोह महारिपु घायक सायक, सुखदायक, दुखछय करणं ॥१॥परमातम प्रभु पतित-उधारन, वारण-लच्छन-पगधरणं ।मनमथमारण, विपति विदारण, शिवकारण तारणतरणं ॥२॥भव-आताप-निकंदन-चंदन, जगवंदन बांछा भरणं ।जय जिनराज जगत वंदत जिहँ, जन 'भूधर' वंदत चरणं ॥३॥
अर्थ : हे अजित जिनेश्वर! आप पापों को हरनेवाले हैं, पापों का नाश करनेवाले हैं। जिनको कोई शरण देनेवाला नहीं है, आप उनको शरण देनेवाले हैं। आपके दर्शन करते हुए नेत्रों को तृप्ति नहीं होती अर्थात् दर्शन करते हुए मन नहीं भरता। आप ऐसे आनंद के जनक हैं जनमदाता हैं, आपका गात (शरीर) सुवर्ण-सा है ।
आपका दिव्योपदेश पूर्ण करुणा से भीगा हुआ है, वह ही गणधर के हृदय का आभूषण है। (वह उपदेश) मोहरूपी महान शत्रु को नाश करनेवाले तीर के समान है, सुख देनेवाला है, दुःख का नाश करनेवाला है ।
हे परमात्मा, हे प्रभु! आप (आचरण से) गिरे हुए जनों का उद्धार करनेवाले हैं, आपके चरणों में हाथी का लांछन है (चिह्न है)। आप कामदेव का नाश करनेवाले हैं, विपत्तियों को दूर करनेवाले हैं, मोक्ष के कारण हैं, भवसागर से पार उतारनेवाले हैं ।
भवभ्रमण के ताप को मेटने के लिए आप चंदन के समान शीतल हैं, आप जगत के द्वारा पूज्य हैं और कामनाओं की पूर्ति करनेवाले हैं। जैसे सारा जगत बंदना करता है वैसे ही समवसरण में आसीन आपके ऐसे चरणों की भूधरदास वंदना करता है ।
१वायक - वचन।
२घायक - नाश करना।
३सायक- बाण।
४वारण लांछन-हाथी का चिह।
५मनमथमारण -कामदेव का नाश करनेवाले।