अरे! हाँ चेतो रे भाई ॥टेक॥मानुष देह लही दुलही, सुघरी उघरी सतसंगति पाई ॥१॥जे करनी वरनी करनी नहिं, ते समझी करनी समझाई ॥२॥यों शुभ थान जग्यो उर ज्ञान, विषै विषपान तृषा न बुझाई ॥३॥पारस पाय सुधारस 'भूधर', भीखके मांहि सु लाज न आई ॥४॥
अर्थ : अरे भाई! संभलो और चेत करो। मनुष्य को दुर्लभ देह तुम्हें मिली है, और अच्छी घड़ी (समय) प्रकट हुई है कि तुम्हें सत्संगति का अवसर मिला है।
(इस मनुष्य देह से) जैसी करनी (करने योग्य कार्य) कही गई है वैसी करनी तो तुम करते नहीं समझते नहीं । इसलिए (बार-बार) करनी समझाई जाती है ।
अब इस शुभ स्थान (मनुष्य जीवन) में अन्तर में ज्ञान जगा है कि विषयरूपी विष का पान करने से प्यास नहीं बुझती, तृष्णा नहीं मिटती।
अब भगवान पारसनाथ के अमृतसम दर्शन हुए हैं, भूधरदास कहते हैं कि उनसे याचना करने में मुझको कोई लाज नहीं हैं ।