चादर हो गई बहुत पुरानी, अब तो सोच समझ अज्ञानी ॥टेक॥अजब जुलाहा चादर बुनि है, सूत करम को तानी ।पांचों मिलकर रेज़ा कीनों, तब सबके मन आनी ॥१॥मैले दाग लगे पापन के, विषयन में लिपटानी ।ज्ञान दीप का लिए सोधरा, व्रत-तप का ले पानी ॥२॥भई खराब गई अब सारी, लोभ मोह में सानी ।ऐसी ओढ़त उमर गमाई, भली बुरी नहीं जानी ॥३॥संशय छोड़ जान मन अपने, ये है वस्तु बिरानी ।'भूधर' कहिए राख जतन से, फेर ये हाथ ना आनी ॥४॥