सो मत सांचो है मन मेरे ।जो अनादि सर्वज्ञ प्ररूपित, रागादिक बिन जे रे ॥टेक॥पुरुष प्रमान प्रमान वचन तिस, कल्पित जान अने रे ।राग दोष दूषित तिन बायक, सांचे हैं हित तेरे ॥सो मत सांचो है मन मेरे ॥१॥देव अदोष धर्म हिंसा बिन, लोभ बिना गुरु वे रे ।आदि अन्त अविरोधी आगम, चार रतन जहँ ये रे ॥सो मत सांचो है मन मेरे ॥२॥जगत भर्यो पाखंड परख बिन, खाइ खता बहुतेरे ।'भूधर' करि निज सुबुद्धि कसौटी, धर्म कनक कसि ले रे ॥सो मत सांचो है मन मेरे ॥३॥
अर्थ : मेरे मन में वह ही मत (धर्म) सच्चा है जो राग-द्वेष रहित है, जो अनादि से चला आ रहा है और सर्वज्ञ-भाषित है ।
हे प्राणी! प्रमाण पुरुष के वचन ही हितकारी व सत्य हैं अन्य कथन जो राग-द्वेष से दूषित हैं वे मात्र कल्पना हैं, ऐसा जानो।
राग-द्वेषरहित देव, हिंसारहित अहिंसा का प्रतिपादन करनेवाला धर्मशास्त्र, लोभरहित गुरु और आदि से अन्त तक विरोधरहित आगम शास्त्र - ये चार रत्न धर्म के आधार हैं।
यह जगत पाखंडों से भरा हुआ है, इसकी परख जिसने नहीं की उसने बहुत धोखा खाया है। भूधरदास कहते हैं कि हे प्राणी ! विवेक की कसौटी पर धर्मरूपी स्वर्ण को परखकर, कसकर, उसी यथार्थता को जानो।